The Last letter Of Indian army
अनुज ओझा 2002 (Allahabad)
की महबूब तेरे इ�
्क़ पर मेरी जान भी कुर्बान है ,
पर बात आई वतन पर , तो ये इ�
्क़ भी कुर्बान है ।
माँ मेरी रण में अभी तेरा लाल घायल हो गया ,
और देख उसकी वीरता को �
त्रु भी कायर हो गया ।
रक्त की होली रचाये ये लाल प्रलय कर दिख रहा है ,
और उसी रक्त से ये आखिरी पत्र तुझको लिख रहा है ।
युद्ध था भीषण पर न एक इंच भी पीछे हटा हूँ ,
ओर थी तुम्हारी �
पथ , इसीलिए गोटी गोटी कटा हुँ ।
एक गोली माँ अभी सीने पर आ लगी है ,
ओर जो ली थी �
पथ आज वो पूर्ण की है ।
हो रहा है आँख के सामने अब अँधेरा ,
पर उसमे भी दिख रहा है आज नूतन सवेरा ।
कह रहे है �
त्रु भी मैं जिस तरह खड़ा हुआ हुँ ,
लगता है जैसे किसी सिंहनी की कोख से पैदा हुआ हुँ ।
ये न समझो माँ की मे चिरनींद लेने जा रहा हूँ ,
मै तुम्हारी कोख से फिर जन्म लेने आ रहा हूँ ।
पिता तुम सदैव कहते थे एक दिन ये रण तुझे भरना पड़ेगा , अपने कंधे पर अर्थी को लेकर चलना पड़ेगा
पर पिता मे तनिक भी भार हल्का कर न पाया ,
ओर करना क्षमा ये लाल पिताऋण को भर न पाया ।
ओर जब सीने में गोली मेरे आकर समायी ,
ओर उस समय भी बड़े भाई मुझे याद है तुम्हारी आयी
मैं तुमको खु�
ी का अब आका�
दे सकता नही हूँ ,
ओर लौट कर आऊँगा ये वि�
्वास दे सकता नही हूँ ।
पर भईया वि�
्वास रखना मै थक कर न नीचे गिरूंगा ,
ओर कसम तुम्हारी भईया , सांस आखिरी तक लडूंगा ।
अंत मे पत्नी मेरी तुमसे मे कुछ माँगता हुँ , है कठिन देना मगर निष्ठुर हृदय हो माँगता हुँ ।
की तुम अमर सौभाग्य की बिंदिया सदा अपने माथे लगाना , हाथ मे चूड़ी पहन कर पैरो में मेहँदी रचाना ।
जानता हूँ बच्चो के प्र�
्न न सुलझे होंगे , सैकड़ो प्र�
मे अभी भी उलझे होंगे ।
पापा हमको छोड़ कर न जाने कहाँ बैठे हुए है , उनको खबर भी है क्या हम उनसे रूठे हुए है ।
उनको तुम समझाना ऐसे जिद पर अड़ जाते नही है , ओर बच्चे ज्यादा जिद करे तो पापा घर आते नही है ।
तुम अकेली हो इस धैर्य को खोने न देना , बे�
क भर जाए दुख से हृदय पर आंख को रोने न देना ।
�
ब्दपथ की यात्रा से तुम मेरी अर्धांगनी हो , सात जन्म तक बजोगी वो अमर वेहरांगनी हो ।
इसीलिए अधिकार तुम्हारा बिन बताये ले रहा हूँ , माथे का सिंदूर तुम्हारा मातृभूमि को दे रहा हूँ ।
अनुज ओझा ( कुंडा , प्रतापगढ़ )
9350847418
About this poem
एक वीर जवान जब सहादत पर � हीद होता है तब वो उन आखिरी सांस पर पंक्ति लिखता है जिसमें अपने घरवालों को अपने मन की बात बोलते हुए विदा लेता है
Font size:
Written on March 29, 2022
Submitted by brahmananuj on March 29, 2022
Modified on March 05, 2023
- 2:25 min read
- 2 Views
Quick analysis:
Scheme | X |
---|---|
Characters | 4,719 |
Words | 486 |
Stanzas | 22 |
Stanza Lengths | 4, 3, 2, 3, 3, 2, 3, 2, 1, 2, 2, 5, 3, 1, 1, 3, 1, 1, 2, 2, 1, 2 |
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"The Last letter Of Indian army" Poetry.com. STANDS4 LLC, 2024. Web. 12 Jun 2024. <https://www.poetry.com/poem/123348/the-last-letter-of-indian-army>.
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