दादी: चार पीढ़ियों को सहजके रखने वाली जीवन लगता तुम बिन खाल
Meghna bhardwaj 2004 (Alwar)
अम्मा, दादी माँ
कहा गयी आप आखिर
कल तक तो मेरे साथ थी।
अकेले मुझे आखिर छोड़ गई क्यों
आखिर इतना ज़िन्दगी से क्यों उदास थी।
सबको सलीका सिखाया जीने का
खुदने फिर क्यों मौत की राह पकड़ ली
थोड़ा समय तो दिया होता कुछ करने को
क्यों अचानक से अपनी साँसें बंद करली।
अभी तो दुनिया देखना बाकी था
इतनी जल्दी आंखें बंद करली।
सबको हँसाते हँसाते
हमेशा के लिए रुला गयी
अम्मा यकीन नही होता
आप बहुत जल्दी चली गयी।
हर वक़्त चहकने वाली मेरी अम्मा
यू एकदम से शांत हो गयी।
दुसरो की नींद उड़ाए रखने वाली
आज खुद गहरी नींद में सो गई।
सबको अपने हुकम पर चलाये रखने वाली
आज खुद 4 कंधो पे सवार हो चल गई
दरवाज़े पे नज़रे गड़ाए अभी भी बैठी हूँ।
शायद आप वापिस आ जाओ
और जोर से मुझे आवाज़ लगाओ
अम्मा बहुत अकेले है हम सब
लौट आओ
अम्मा लौट आओ
आपकी बहुत याद आती है।
ज़िन्दगी के कोरे पन्नो पर आपके यादों की छाप लग गयी है।
जब से आप गयी हो अम्मा
चेहरे से हँसी छीन गयी है।
हा ये पता था मुझे एक दिन आपको जाना ही होगा
पर वो एक दिन इतना जल्दी आ जायेगा ये नही सोचा था
सूना पूरा घर होगया आपके बिन
कही मेरे मन नही लगता आपके बिन
एक अजीब सी घुटन महसूस होती है
आपको खोने का गम बार बार सताता है।
आपकी हर एक बात याद है।
अक्सर उन्हें सोचकर ही आंखें भीग जाती है।
नही दे पा रही दिलासा अपने आप को
घर का कोना कोना आपकी यादों से भरा है।
घर मे कही नज़र नही आ रही आप
दिल ने हमेशा आप रहोगी
कभी मैं भटक जाऊ
तो सही राह दिखाना अम्मा
मुश्किल में पड़ जाऊ कभी
तो तुम ढाल बन खड़ी हो जाना
आपके साथ का ये सफर बहुत जल्दी खत्म हो गया।
याद आपकी हर वक़्त बेहिसाब आती है।
सोचकर आपकी बातें मेरी आँखें भर आती है।
मेरी तारीफे अब कोई करता नही घर मे
स्वेटर कोई बुनता नही मेरे लिए।
आप हर खुशी के मौके पे याद आके मुझे उदास कर देती हो
लिखकर आपकी यादों को संझौ के रखूंगी।
आपकी कही हर बात, आपका सिखाया हर ज्ञान याद रखूंगी।
बड़ी असमझ में पड़ जाती हु। सबको घर मे देखती हूं और आपको नही पाती हूँ।
आपका बिस्तर, आपके कपड़े, आपका सामान सब बिल्कुल वैसा है पर आप नही हो।
बहुत बड़ी कमी है ज़िन्दगी की
जिसे कोई पूरा नही कर सकता।
बहुत जल्दी की आपने जाने की
अपनी आखरी इच्छा तो बता देती।
आपके बिना कैसे जीये ये तो सीखा देती।
आज सचमुच यकीन हो गए
जाने वाले वाक़ई में पीछे मुड़कर नही देखा करते।
आप तो एक दम से उड़नछू हो गयी
About this poem
यह कविता मैंने अपनी दादी पर लिखी है। जो कि अब इस दुनिया मे नही है। यह पूरी तरह मेरे द्वारा ही लिखी गयी है। इसमें किसी का कोई योगदान नही है।
Written on September 15, 2022
Submitted by Meghnarajendra2004 on September 15, 2022
Modified on March 05, 2023
- 2:15 min read
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Quick analysis:
Scheme | A |
---|---|
Characters | 5,076 |
Words | 451 |
Stanzas | 1 |
Stanza Lengths | 65 |
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"दादी: चार पीढ़ियों को सहजके रखने वाली जीवन लगता तुम बिन खाल" Poetry.com. STANDS4 LLC, 2024. Web. 30 May 2024. <https://www.poetry.com/poem/140603/दादी:-चार-पीढ़ियों-को-सहजके-रखने-वाली-जीवन-लगता-तुम-बिन-खाल>.
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